Friday, October 2, 2020

जब कृष्ण गये कब्र

 द्रौपदी की चीर हरी गई

राधा की रीढ़ मोड़ी गई

सीता की सील तोड़ी गई

अहिल्या की आंख फोड़ी गई

जानकी की ज़बान काटी गई।

हे कृष्ण! कहां हो ? देखो!

कृष्णा कराह रही

कहीं भी पनाह नहीं ?

कौरवों की चाह यही

चीर,सील दाह रही

क्या मथुरा से हाथरस का

बचा कोई राह नहीं ?

मथुरा में ही हो या बन गये द्वारिकाधीश?

कब से कौरवों को दे रहे आशीष ?

द्रौपदी कितना करे सब्र

जब कृष्ण चले गए कब्र।

उसे अब कृष्ण को पुकारना नहीं

कौरवों को ललकारना होगा

दुर्गा, काली, शक्ति बन

संघर्ष की ज्वाला धधकाना होगा।

-- रामेश्वर दुबे ०२अक्टूबर २०२०








Monday, September 28, 2020

जीवन-संघर्ष

 धारा में ही बहते रहने के लिए नहीं हैं हम

सिर्फ दूरी तय करने के लिए नहीं हुआ हमारा जनम।

धारा में बहकर बहुत दूरी तय करते हैं वो

कमजोर, बीमार, लाचार, मृतप्राय है जो ।

जो जितना कमजोर बीमार लाचार मृतप्राय है करते उतनी तय दूरी।

दूरी तय करने की दौड़ में जिंदगी रह जाती अधूरी ।

कभी कभी भंवर में फंसकर न कर पाते तय दूरी

हांफते हांफते न हवस, पूरी न जिंदगी पूरी ।

हम तो धारा के विपरित चलने का करते हैं प्रयास

जीवन जज़्बात से भरपूर लिए आजादी की आश ।

उल्टी धारा में कभी एक पग तो कभी दो पग चल पाते हैं

उमंग और उत्साह में कभी छलांग भी लगाते हैं।

पर फिर वेग में बहकर जहां थे वहीं चले आते हैं

इसी संघर्ष में जीवन का असीम आनंद पाते हैं।

धारा में बहकर विपरीत चलने का नहीं करते नाटक न पाखंड

बहुत दूरी तय नहीं करके भी जीवन जीते अखंड।

अब हमें कह लो तुम मूर्ख या पगली से नहीं कम

जीवित मछली हैं हम, जीवित मछली हैं हम ।

रामेश्वर दुबे






Sunday, September 20, 2020

किस काम का?

 कभी भी दया दर्शाते नहीं, इंसान हैं? किस काम का?

बिलबिला रहे भूख से बच्चे,सामान है? किस काम का?

सपने कभी तो पूरे हुए नहीं, अरमान है?किस काम का?

तीर रखकर भी चलाते नहीं,कमान है? किस काम का ?

दुश्मन चढ़ा है छातीपर, इलाके भर में पहचान है? किस काम का?

उठाते नहीं आवाज कभी, ज़बान है? किस काम का  ?

रामेश्वर दुबे,२१/९/२०२०

Friday, September 18, 2020

बांया-दांया

 जब मैंने बांया पैर उठाया,

वह बहुत जोर से धमकाया

है भी तुम्हारे पास बांया पैर?

उठाओ मत, न रहेगी खैर!

मैंने पूछा - क्या आप दक्षिण पंथी हैं

सिर्फ सुनते हैं देखते कुछ नहीं।

जब मेरा दांया पैर उठा

वह हमसे अचानक रुठा

बोला- आप दांये पैर से क्यों चलते,

यह पैर तो लोगों को रहा है मसलते

जोर से चिल्लाया और नारा लगाया

होगे नेस्तनाबूद क्रांति का विहान जो आया।

मैंने पूछा क्या आप वामपंथी हैं?

सिर्फ देखते हैं, सुनते कुछ नहीं।

मैंने दोनों को बुलाया

विस्तार से समझाया

मैं सदियों सदियों से दोनों पैरों से चलता हूं

कभी बांया तो कभी दांया पैर आगे करता हूं।



Tuesday, June 23, 2020

ANAAM

                                                         अनाम
एक गांव में25 वर्षीय एक युवक रहता था। था तो वह निकम्मा, झूठा,फरेबी,डरपोंक और कमजोर पर अपनी इन कमियों को छिपाने के लिए वह बड़े बड़े डिंग हांकता था। तरह तरह के मुखौटा पहनता था। अपने आपको गॉव का सबसे बहादुर,बुद्धिमान और मजबूत व्यक्ति बताता था। स्वयं के द्वारा गढ़े गए किस्से कहानियों जैसे मगरमच्छ से लड़ाई,शेर से सामना,सुनसान  जंगल में अकेले रात रात भर तपस्या आदि सुनाया करता था। उसके कहने के अंदाज,शैली,वाक्पटुता से गांव के सभी जवान,बच्चे,बूढ़े बहुत प्रभावित थे। उसके घर में उसके अलावा उसकी सत्तर वर्षीय माँ रहती थी। चूँकि वह बातों के अलावा कोई और काम धंधा कर स्वयं कमाने की योग्यता नहीं रखता था,ऐयाशी उसके रग में थी,अतः उसने शादी भी नहीं करने की ठान ली थी। पर जिंदगी तो चलानी थी माँ की और अपनी भी ऐयाशी भरी,वह गांव के सेठ साहूकारों से छुपकर सम्बन्ध रखता था तथा उनके दिए धन पर अपना घर चलाता था।
 वह  गाँव के सभी लोगों को चौपाल पर बुलाकर महीने में एक दिन अपने बहादुरी के कृत्रिम किस्से परम्पराओं और धर्म के चासनी में चुभोकर ऐसे चटाता था कि पूरा गांव महीने भर उसे चाव से चाट चाट कर ,चटकारे ले ले कर चबाता और चूसता रहता था। जब कोई हारी-मारी,वीमारी,भुखमरी,बेरोजगारी,प्राकृतिक आपदा या महामारी आती तो वह टोना,टोटका जैसे ताली,थाली,घंटी,शंख बजाना, घर में अँधेरा कर बाहर दिया,टॉर्च,मोमबत्ती जलाना,पुरे गांव में पुष्पक विमान से  पुष्प वर्षा करवाना,गोबर गणेश से प्रेरित प्लास्टिक सर्जरी करवाना  ,नाले के गैस से खाना बनवाना,रोजगार हेतु युवाओ द्वारा पीली मिट्टी के पकौड़े तला जाना,पुरे गांव को गाय के गोबर से लिपवाना,गांव के सभी लोगों को बन्दर की तरह नचाना,उछल कूद कराना उसका सगल था। इससे सभी लोग विशेषकर युवा बहुत सम्मोहित होते थे। उन्हें लगता था ये टोने - टोटके जो श्रम साध्य नही हैं उन्हें सीधे सुख एवं स्वर्ग की प्राप्ति करा देंगे। जबकि स्वर्ग की परिभाषा ही है - स्व  गताः स्वर्गः ,जहाँ स्वयं के श्रम से पहुंचा जाय ,स्वर्ग। नरक -नरः कृताः नरकः। जो दूसरे मनुष्य के कृति से प्राप्त हो वह नरक। बिना श्रम स्वर्ग की अभिलाषा से पूरा गांव अभिभूत हो गया। लोग उसे भगवान् ,कलियुग में अवतार मानने लगे। ऐसे ही कई वर्ष वित गए।अब तो गांव के लोग खासकर युवा वर्ग इस तरह मदहोश हो गया कि  अगले महीने चौपाल में कौन सा नया पराक्रम,नयी घटना या कहानी सुनाएगा ,इस पर दाव (बेट) लगाने लगा।इस तरह कई वर्ष बित गए।  सालों बाद जब गांव में काम धंधा बंद होने लगा, युवक बेरोजगार और विमार रहने लगे ,साहूकारों के
नशा (ड्रग) का व्यापार बढ़ने लगा ,अपने बच्चों को  बचाने के लिए बुजुर्ग अपनी जमीन,जायदाद बेचने लगे तो चौपाल में कानाफुसी होने लगी, आखिर ऐसा क्यों? गांव विकाश नहीं कर रहा बल्कि बर्बाद हो रहा!कुछ बुद्धिमान बुजुर्गो को शक होने लगा उस युवा के पराक्रम की कहानी और बहादुरी पर।आखिर क्या किया जाय ? वे उसकी परीक्षा लेने की ठाने।
एक रात चार बुजुर्ग उसके घर गए। दरवाजा खटखटाने लगे। वे आवाज नहीं दिए ,सोचे कि वह घर में तो होगा नही क्योंकि वह तो हर रात जंगल में तपस्या करने जाता है गांव की बेहतरी और विकाश के लिए। मात्र दो चार घंटे ही सो पाता  है वह भी कभी कभी।पर वह घर पर ही था। आवाज सुनने के वावजूद भी वह कुछ नहीं बोला इस डर से कि वह रात में जंगल में तपस्या नहीं करता बल्कि घर में ही सोता है इसका भंडाफोड़ न हो जाय।दरवाजा जब बहुत जोर शोर  से पीटा जाने लगा और बेटा कुछ नहीं बोल रहा था तो बूढी बीमार माँ ने आवाज लगाया,बेटा !देखो ,बाहर दरवाजा कौन पीट रहा है?बिना बोले बेटे के पास अब कब कोई चारा नहीं था, कहीं बहार वाले सुन न ले ,क्योंकि आसक्त माँ ने आवाज लगाना जो शुरू कर दिया था जोर शोर से।
बेटा बोला -कौन हो तुम लोग ?
बुजुर्ग बोले -दरवाजा खोलो, नहीं तोड़ देंगे।
बेटा -हिम्मत है तो तोड़कर दिखाओ? मैं तुम्हे बताता हूँ। मैं कितना बहादुर ,वीर,पराक्रमी हूँ ,नहीं जानते ? घर में असलहे,बन्दुक,बम,बारूद  सब भरे पड़े हैं। सब मारे जाओगे।
बुजुर्गों  ने दरवाजा तुरन्त तोड़ दी।
बेटा -दरवाजा तो तोड़ दी ,हिम्मत है तो घर के सामान को हाथ लगा के दिखाओ। तब मैं तुम्हे बताता हूँ।
बुजुर्ग घर के सारे बासन,बर्तन,साहूकारों द्वारा दिए गए खाने पीने के सामान ,महंगे मशरूम,कीमती काजू,पिस्ता,पेन,विदेशी घडी,आयातित चश्मे सब ले गए।
बेटा-सामान तो ले गए,हिम्मत है तो माँ को छूकर दिखाओ। मेरे लाल आँख के बारे में सूना नहीं !इसके लाल होते ही भस्म हो जाओगे।
हालाँकि बुजुर्ग सिर्फ उसके बहादुरी की परीक्षा करने और उसके पाखण्ड का भंडाफोड़ कर गांव को बर्बादी से बचाना चाहते थे जो की वे कर चुके थे। पर उसके चुनौती को स्वीकार कर उसकी  माँ के गहने,जेवर,साडी,सब उतार ले गए। असक्त ,बीमार, बूढी  माँ नंगी हो बेसुध पड़ी रही।
बीर,बहादुर बेटा बोला -अबे तुम लोग कायर हो,मैंने माँ को छूने की चुनौती दी थी उनकी  साड़ीऔर सामानों   को नहीं ,हिम्मत है तो माँ को छू के दिखाओ तब मैं तुमलोगो को अपना  शौर्य दिखाता हूँ।
बुजुर्ग बेचारे सब परेशान हो गए। उनकी अपनी भी इज्जत थी,संस्कार था,गांव की प्रतिष्ठा थी,मान था,चुपचाप चले गए, वीर बेटे की तथाकथित बहादुरी ,बाचाल व्यवहार,विवेक हीनता और प्रखर  बुद्धिमन्दता पर तरस खाकर।
अगले दिन सुबह  फिर बेटा गांव के सभी बच्चे ,जवान बूढ़ों को बुलाकर चौपाल में नया मुखौटा लगाकर अपने नए पराक्रम का विस्तृत वर्णन करने लगा।
ग्रामवासियों,मीतरों,भाइयों और बहनों !मैं आपको बताना चाहता हूँ कि कल रात हमारे कुछ पडोसी हमारे घर में घुसने की कोशिश किये।वे चार थे हम अकेले। पर हमारी वीरता के आगे वे असक्त और अक्षम हो गए। वे घर में न घुसे, न घुस पाए ,एक इंच भी नहीं। यह एक बड़ा और विचित्र संयोग देखिये कि भगवान् राम की असीम कृपा और गांव के सौभाग्य के चलते मैं कल रात ग्राम विकाश के लिए जंगल में तपस्या करने न जाकर घर में ही अपने असलहों ,बारूदों,बमों ,बंदूकों को सजा रहा था। मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि आपका गांव एक सुरक्छित हाथों में है।
 बाहर बस्ती में बेटा बयान  दे रहा था,मन की बात सुना रहा था 'धर्म'भीरु युवावों को कि अब पडोसी थर थर काँप रहे हैं ,गांव बहुत तेजी से विकाश कर रहा है,विश्वग्राम बन गया है ,विश्वगुरु बने में कुछ ही समय और लगेंगे।
और अंदर घर में असक्त , अस्वस्थ ,अधनंगी मां सुबक सुबक कर रो रही थी सम्मान खोकर,प्रतिष्ठा गवांकर ,इज्जत लूटाकर।
 
रामेश्वर दुबे
23 जून 2020






Wednesday, June 10, 2020

JEET YA HAAR ?

                          जीत या हार ?
युद्ध के शुरु होने के पहले    ही जीत के जश्न का इजहार
ताली,थाली,घंटी, शंख,नगाड़ों की नाद,फूलों की बौछार
घर के अंदर अन्धकार,बाहर नव नव दीपों की कतार
राजा की जर्जर आत्मा,कुंठित मन,तन पर नवलखा हार
सहो,सहो, सहो सहते रहो,कोरोना की मार ,मेरे यार
जनता जनार्दन के जज्वात को जगाये या किये खिलवाड़?
ईमानदार, चौकीदार,कल्कि अवतार ,सुसज्जित दरबार
एक बार नहीं, बार, बार करते रहे जनता से एक तरफ़ा करार
पचास दिन में भ्रष्टाचार ,एक्किश दिन में होगी कोरोना की हार
ब्रह्मा का दिन ,गिन गिन दिन करते रहो इन्तजार
जीत की नहीं,कष्ट,कलह,क्लेश,रोग,भूख,मौत की मार
युद्ध जारी है ,करो इंतजार ,करो इंतजार ,करो इंतजार। 

Sunday, May 24, 2020

Hey Ram Se Jay Shri Ram

रामेश्वर दुबे
18 सितम्बर 2019
                                          "हे राम" से "जय श्री राम "
हे राम! तुम तो भगवान ,तुम्हारी जगह तो पाषाण
तो रहो तुम मूर्ति में ही विराजमान ,
किसी के ह्रदय में विराजने की, कैसे की जूरत ?
किसी भी तरह नहीं वर्दास्त अब तुम्हारी ये सूरत।
अब रहो तुम अयोध्या घाट में,और वो राजघाट में,
घाट  में विराजमान रहने वाले,तुम कैसे पहुंचे घट में ?
मितरों!क्या नहीं रहा इसीलिए राष्ट्र,धर्म संकट में?
अब संकट मुक्त होगा भारत ,
बस यही मंत्र जप रहे आज के नारद--
हिदुस्तान -पाकिस्तान,श्मसान -कब्रिस्तान ,
हिन्दू -मुसलमान
वेद-बाइबिल ,पुराण -कुरान ,
गीता,गाय ,गोबर ,गंगा नहान ,
जय श्री राम ,जय श्री राम,जय श्री राम।  






Saturday, May 23, 2020

kahani me kavita

                                             कहानी  में कविता                रामेश्वर दुबे
                                                                                          8  दिसम्बर ,2016
                                                                             नोट बंदी के ठीक 3हपते बाद
बचपन से ही सुनते आए हैं एक कहानी
परदादा से दादा ,दादा से पिता (नहीं अब तो पापा )
अब मैं सुनाता आपको वही जबानी।
           एक था राजा बिलकुल ही नंगा
           अंग, प्रत्यंग  एकदम बिद्रूप
          कसाई, क्रूर ,काला,कपटी,कोरा- कुरुप
          देखकर सारे "सयाने विद्वान "  हुए मुग्ध
         देख राजा का अद्भुत रूप
         भूल गए सुध और बुध।
वाह!क्या वस्त्र है ,सौंदर्य है,साज है ,
ना देखा ऐसा राजा न देखा ऐसा राज है.
राजा आज तो खूब सजा है ,
वस्त्र उसपर खूब फबा है ,
इसीलिए तो देश अब पुनः विश्व गुरु बन रहा
और विदेश में नाम बहुत ऊपर चढ़ रहा।
         एक निर्दोष बालक राजा को देखा
        और गैलेलिओ की तरह बुदबुदाया-
        अरे!राजा तो वस्त्रहीन,निर्मम नंगा है.
        राष्ट्र भक्त,धर्म भक्त ,अंध भक्त उसे हड़काये
        तू तो बालक है,क्यों नाहक लेता पंगा है.
पोस्टर पढ़,धार्मिक विद्वानों और राजा की बात सुन ,
आँखिन देखि दूर कर,नाक तो कटेगी ही,साँस भी बंद हो जायेगी
अन्यथा आँख अपनी बंद कर।
क्या हुआ बालक का किसी ने नहीं बताया -
न परदादा ने ,न दादा  ने,न पापा ने
और मुझे भी नहीं मालूम ,आपको मालूम है क्या?
                पर एक बात मालूम है ,
            आज इस देश में एक भी बच्चा नहीं बचा है ,
            हाँ सच है ,एक भी निर्दोष बच्चा नहीं बचा है ,
            सिर्फ राजा सजा है ,सिर्फ राजा सजा है ,
            न कविता बची है न कबीर बचा है ,
            न विज्ञान बचा है न ईमान बचा है ,
             सिर्फ भक्त बचे हैं और राजा सजा है ,
             प्रजा में गर्म खून न रईसों में पानी बचा है
              सिर्फ  सजा है ,सिर्फ राजा सजा है।  

         
                    

Saturday, May 16, 2020

EK PROMOTION SADHE TERAH TRANSFER

                                          एक प्रोमोशन साढ़े तेरह ट्रांसफर
नेह स्नेह की करके बातें ,हमको क्यों नाहक फुसलाते
आज बिन पद , पैसा के कहाँ ,कौन प्रतिष्ठा पाते ?
हीरे  की हार की छोड़ें बात,एक सिल्वर की बिछिया भी तो लाते ?
घर में मेहनत करके मरी जा रही
बत्तीस बरस में काश!  कभी एक कामवाली रख पाते!
जाइये  बाहर , औरों  की तरह ओढ़िये खोल
अन्यथा मैं  खोलूंगी  अब आपकी पोल --
बाइस बरष में एक प्रोनत्ति,साढ़े तेरह तबादला
आपके जिंदगी की यह उपलब्धि क्या कम रही ?
एक प्रोमोशन साढ़े तेरह ट्रांसफर ,सुना, देखा आपने कहीं
मैं तो झेल रहा हूँ वही , मैं तो  भोग रहा हूँ वही।  ५
यह व्यंग्य सुन मै हुआ मौन ,आखिर अब सम्बल देगा कौन
स्वर्णाभूषण ,सारी सुख सुविधा तो मिल सकती है ,
क्या मेरी अंतरात्मा अंदर थोड़ी हिल सकती है ?
हिल सकती है --
पर मन बेचैन, चित में अंतर्द्वंद भरा भरा होगा
कहीं काला ,कही सफ़ेद ,कहीं लाल ,हरा होगा
झंझावाती मन और म्लान मुख,
देख न सकी देर तक मेरा दुःख ,
बोलीं --
अरे! किस दुःख दुविधा में पड़ गए ,
किस पीड़ा, संताप में आप गड़  गए,
हम करते हैं श्रम ,हमारा सेहत ठीक
क्यों पसारे हाँथ और मांगे किसी से भीख ,
वणिक या कुटिल बुद्धि में
है कहीं थोड़ी भी आनंद दीख !
आप हैं नारियल ,बेर क्यों बनें ,यही  तो आतंरिक आकर्षण
शरीर स्वस्थ ,चित्त स्थिर , मन तो है आपका स्वक्छ दर्पण 
आप जहाँ हैं वहीँ खड़े रहें
उसी संघर्ष पथ पर अड़े रहें
पर आप तो नास्तिक
करती मैं भगवान् से रोज पूजा, प्रार्थना कि
वे बदले आपको कभी नहीं ,कभी नहीं ,कभी नहीं।
एक प्रोमोशन  ,साढ़े तेरह ट्रांसफर सुना ,देखा आपने कहीं
मैं तो झेल रहा हूँ वही , मैं तो भोग रहा हूँ वही।



Thursday, May 7, 2020

APNI DIARY SE ( 22 FEBRUARY 2005)

                                        अपनी डायरी  से     ( 2 2 फरवरी 2005 )

आज हबीब  तनवीर जी का नाटक "चरणदास चोर " दयाल सिंह कॉलेज ,ऑडिटोरियम, नई दिल्ली में देखा। नाटक ने बहुत प्रभावित किया। चरण दास चोर बने गोविंद राम जी से भी बात किया। नाटक बहुत ही उत्कृस्ट था। अंत में हबीब तनवीर जी द्वारा दिया गया भाषण  भी। कला ,साहित्य विरोध की पृस्ठभूमि तैयार करते हैं। विरोध एक दिन क्रांति बन जाता है। हर कलाकार ,साहित्यकार स्वभावतः प्रकृतिस्थ ,कुदरती तौर पर व्यवस्था विरोधी होता है। जो नहीं है,वह चाटुकार है। कला और साहित्य व्यवस्था पूजक या पोषक हो ही नहीं सकता। जँहा ऐसा हुआ ,वह समाज ,राज मृत हो जाता है। आज नहीं तो कल। हर सत्य का यही हस्र  होता है ;जीवन में विरोध का सामना ,मरने पर आम लोगो द्वारा और विरोधियों द्वारा भी पूजा जाना। सिर्फ पूजा जाना ,आचरण नहीं। क्योंकि वह उनकी शक्ति के बाहर होता  है। यह हस्र हुआ -सुकरात का ,ईशा मशीह का ,गाँधी का और चरण दास चोर का भी।
रामेश्वर दुबे
7 मई 2020 ( स्मृति 22  फरवरी 2005 )

Tuesday, April 28, 2020

karmveer

                                                        कर्मवीर
कैसे छोड़ें अपनी मेहनत ,कोई  बता दे आज हमको
सबने अपने धर्म को छोड़ा, अंतर्तम और मर्म को तोड़ा
कैसे छोड़े अपनी नियत, कोई बता दे आज हमको।
                         पसीने बहाकर खाते कमाई ,कवि करते हौसला अफ़जाई ,
                         सूरज ,बादल,वायु  से मिताई ,तपकर ,बहकर करते भलाई ,
                         कैसे छोड़े अपनी कुदरत कोई बता दे आज हमको।
संजोकर रखते विरासत थाती ,गुलामी नहीं है हमको भाती ,
मारो गोली धरम, जाती  , दूर रहो सब आतम  घाती ,
कैसे फोड़ें अपनी किस्मत ,कोई बता दे आज हमको।
                        नहीं भरोसा इनकी नेकी में ,पर सर अपना इनकी ढेकी में ,
                        बल है सिर्फ अपनी एकी  में
                         कैसे बताए अपनी दिक्कत ,कोई बता दे आज हमको।
गाँवों में ढेले फेकते ,कस्बों में ठेले लगते ,
शहरों में मेले लगते ,घंटो खटते धेले मिलते ,
मांगो तो थाने, जेलें मिलते
कैसे छोड़े अपनी कीमत ,कोई बता दे आज हमको।
                        धर्म नहीं तुम कर्म ही दे दो ,योग क्षेम का मर्म ही दे दो ,
                         बियर ,पेप्सी,  नहीं जल गर्म ही दे दो
                        बच्चों को दो रोटी नर्म  ही दे दो ,
                        और नहीं हमसे थोड़ी शर्म ही ले लो ,
                         कैसे छोड़े अपनी इज्जत कोई बता दे आज हमको।
उत्पादकता के मस्तक है हम ,गुणवत्ता के सर्जक है हम
मानवता के रक्षक है हम
कैसे छोड़े अपनी हिम्मत कोई बता दे आज हमको।
कैसे छोड़े अपनी मेहनत ,कोई बता दे आज हमको।

रामेश्वर दुबे ,
25  मई 2016 ,( आकाशवाणी ,लखनऊ के श्रमिक जगत कार्यक्रम में प्रसारित)