एक प्रोमोशन साढ़े तेरह ट्रान्सफर
सुना, देखा आपने कहीं
मैं तो झेल रहा हूँ वही
मैं तो भोग रहा हूँ वही।
बाईस बरस बीत गये, यह पुरानी बात है
बस एक प्रोन्नति, साढ़े तेरह तबादला
जिसे मैं कहता हूँ दिन, वे कहते रात है,
अफसर हो ,सरकारी नौकर हो ,कवि हो ,
ब्राह्मण हो ,बनिया हो ,हरिजन हो,
हिन्दु हो,मुसलमान हो ,गिरिजन हो
वे रोज पूछते -क्या तुम्हारी जात है ,
और क्या तुम्हारी औकात है?
मौन ही रह करुण मन आक्रोश में कहता
आपके दिए पीड़ा, कष्ट
हमारी स्वतंत्रता के सौगात हैं ,
मै सबकुछ हूँ या कुछ भी नहीं।
एक प्रोमोशन साढ़े तेरह ट्रान्सफर
सुना, देखा आपने कहीं
मैं तो झेल रहा हूँ वही
मैं तो भोग रहा हूँ वही।
पत्नी कहतीं -महामूर्ख हैं आप
अपने मन के राजा हैं ,
चोर ,चूहेडे ,कुत्ते ,कम पढ भी
रोज बजाते आपके बाजा हैं
घर मे जितना मुझे बोल लीजिए
अपने मन की भङास खोल लीजिए ,
बाहर तो कुछ कर पाते नही
उनके आगे दाल गल पाते नही
अन्यथा बाईस बरस बीत गए
और एक भी प्रोमोशन हाथ आते नही,
उसके ऊपर साढ़े तेरह तबादला
अरे! डूब मरने को चुल्लू भर पानी है कही.
एक प्रोमोशन साढ़े तेरह ट्रान्सफर
सुना, देखा आपने कहीं
मैं तो झेल रहा हूँ वही
मैं तो भोग रहा हूँ वही।
सुना, देखा आपने कहीं
मैं तो झेल रहा हूँ वही
मैं तो भोग रहा हूँ वही।
मैं प्यारी पत्नी को समझाता
देखें, जीवन मे कितना आनन्द है आता
जब ह्रदय करुणित ,मन संतोषी
फिर क्यों ढूँढे कहाँ, कौन है दोषी
जो होने होते है वही होते हैं
आज मै हँसता हूँ वे रोते हैं
हम वही काटते हैं जो बोते हैं
अहा! हम क्या पाते हैं, क्या खोते हैं
फिर भी मेरे प्रतिबद्धता ,प्यार ,समर्पण
में कोई कमी तो नहीं
एक प्रोमोशन साढ़े तेरह ट्रान्सफर
सुना, देखा आपने कहीं
मैं तो झेल रहा हूँ वही
मैं तो भोग रहा हूँ वही।
सुना, देखा आपने कहीं
मैं तो झेल रहा हूँ वही
मैं तो भोग रहा हूँ वही।