Friday, October 2, 2020

जब कृष्ण गये कब्र

 द्रौपदी की चीर हरी गई

राधा की रीढ़ मोड़ी गई

सीता की सील तोड़ी गई

अहिल्या की आंख फोड़ी गई

जानकी की ज़बान काटी गई।

हे कृष्ण! कहां हो ? देखो!

कृष्णा कराह रही

कहीं भी पनाह नहीं ?

कौरवों की चाह यही

चीर,सील दाह रही

क्या मथुरा से हाथरस का

बचा कोई राह नहीं ?

मथुरा में ही हो या बन गये द्वारिकाधीश?

कब से कौरवों को दे रहे आशीष ?

द्रौपदी कितना करे सब्र

जब कृष्ण चले गए कब्र।

उसे अब कृष्ण को पुकारना नहीं

कौरवों को ललकारना होगा

दुर्गा, काली, शक्ति बन

संघर्ष की ज्वाला धधकाना होगा।

-- रामेश्वर दुबे ०२अक्टूबर २०२०