Sunday, May 24, 2020

Hey Ram Se Jay Shri Ram

रामेश्वर दुबे
18 सितम्बर 2019
                                          "हे राम" से "जय श्री राम "
हे राम! तुम तो भगवान ,तुम्हारी जगह तो पाषाण
तो रहो तुम मूर्ति में ही विराजमान ,
किसी के ह्रदय में विराजने की, कैसे की जूरत ?
किसी भी तरह नहीं वर्दास्त अब तुम्हारी ये सूरत।
अब रहो तुम अयोध्या घाट में,और वो राजघाट में,
घाट  में विराजमान रहने वाले,तुम कैसे पहुंचे घट में ?
मितरों!क्या नहीं रहा इसीलिए राष्ट्र,धर्म संकट में?
अब संकट मुक्त होगा भारत ,
बस यही मंत्र जप रहे आज के नारद--
हिदुस्तान -पाकिस्तान,श्मसान -कब्रिस्तान ,
हिन्दू -मुसलमान
वेद-बाइबिल ,पुराण -कुरान ,
गीता,गाय ,गोबर ,गंगा नहान ,
जय श्री राम ,जय श्री राम,जय श्री राम।  






Saturday, May 23, 2020

kahani me kavita

                                             कहानी  में कविता                रामेश्वर दुबे
                                                                                          8  दिसम्बर ,2016
                                                                             नोट बंदी के ठीक 3हपते बाद
बचपन से ही सुनते आए हैं एक कहानी
परदादा से दादा ,दादा से पिता (नहीं अब तो पापा )
अब मैं सुनाता आपको वही जबानी।
           एक था राजा बिलकुल ही नंगा
           अंग, प्रत्यंग  एकदम बिद्रूप
          कसाई, क्रूर ,काला,कपटी,कोरा- कुरुप
          देखकर सारे "सयाने विद्वान "  हुए मुग्ध
         देख राजा का अद्भुत रूप
         भूल गए सुध और बुध।
वाह!क्या वस्त्र है ,सौंदर्य है,साज है ,
ना देखा ऐसा राजा न देखा ऐसा राज है.
राजा आज तो खूब सजा है ,
वस्त्र उसपर खूब फबा है ,
इसीलिए तो देश अब पुनः विश्व गुरु बन रहा
और विदेश में नाम बहुत ऊपर चढ़ रहा।
         एक निर्दोष बालक राजा को देखा
        और गैलेलिओ की तरह बुदबुदाया-
        अरे!राजा तो वस्त्रहीन,निर्मम नंगा है.
        राष्ट्र भक्त,धर्म भक्त ,अंध भक्त उसे हड़काये
        तू तो बालक है,क्यों नाहक लेता पंगा है.
पोस्टर पढ़,धार्मिक विद्वानों और राजा की बात सुन ,
आँखिन देखि दूर कर,नाक तो कटेगी ही,साँस भी बंद हो जायेगी
अन्यथा आँख अपनी बंद कर।
क्या हुआ बालक का किसी ने नहीं बताया -
न परदादा ने ,न दादा  ने,न पापा ने
और मुझे भी नहीं मालूम ,आपको मालूम है क्या?
                पर एक बात मालूम है ,
            आज इस देश में एक भी बच्चा नहीं बचा है ,
            हाँ सच है ,एक भी निर्दोष बच्चा नहीं बचा है ,
            सिर्फ राजा सजा है ,सिर्फ राजा सजा है ,
            न कविता बची है न कबीर बचा है ,
            न विज्ञान बचा है न ईमान बचा है ,
             सिर्फ भक्त बचे हैं और राजा सजा है ,
             प्रजा में गर्म खून न रईसों में पानी बचा है
              सिर्फ  सजा है ,सिर्फ राजा सजा है।  

         
                    

Saturday, May 16, 2020

EK PROMOTION SADHE TERAH TRANSFER

                                          एक प्रोमोशन साढ़े तेरह ट्रांसफर
नेह स्नेह की करके बातें ,हमको क्यों नाहक फुसलाते
आज बिन पद , पैसा के कहाँ ,कौन प्रतिष्ठा पाते ?
हीरे  की हार की छोड़ें बात,एक सिल्वर की बिछिया भी तो लाते ?
घर में मेहनत करके मरी जा रही
बत्तीस बरस में काश!  कभी एक कामवाली रख पाते!
जाइये  बाहर , औरों  की तरह ओढ़िये खोल
अन्यथा मैं  खोलूंगी  अब आपकी पोल --
बाइस बरष में एक प्रोनत्ति,साढ़े तेरह तबादला
आपके जिंदगी की यह उपलब्धि क्या कम रही ?
एक प्रोमोशन साढ़े तेरह ट्रांसफर ,सुना, देखा आपने कहीं
मैं तो झेल रहा हूँ वही , मैं तो  भोग रहा हूँ वही।  ५
यह व्यंग्य सुन मै हुआ मौन ,आखिर अब सम्बल देगा कौन
स्वर्णाभूषण ,सारी सुख सुविधा तो मिल सकती है ,
क्या मेरी अंतरात्मा अंदर थोड़ी हिल सकती है ?
हिल सकती है --
पर मन बेचैन, चित में अंतर्द्वंद भरा भरा होगा
कहीं काला ,कही सफ़ेद ,कहीं लाल ,हरा होगा
झंझावाती मन और म्लान मुख,
देख न सकी देर तक मेरा दुःख ,
बोलीं --
अरे! किस दुःख दुविधा में पड़ गए ,
किस पीड़ा, संताप में आप गड़  गए,
हम करते हैं श्रम ,हमारा सेहत ठीक
क्यों पसारे हाँथ और मांगे किसी से भीख ,
वणिक या कुटिल बुद्धि में
है कहीं थोड़ी भी आनंद दीख !
आप हैं नारियल ,बेर क्यों बनें ,यही  तो आतंरिक आकर्षण
शरीर स्वस्थ ,चित्त स्थिर , मन तो है आपका स्वक्छ दर्पण 
आप जहाँ हैं वहीँ खड़े रहें
उसी संघर्ष पथ पर अड़े रहें
पर आप तो नास्तिक
करती मैं भगवान् से रोज पूजा, प्रार्थना कि
वे बदले आपको कभी नहीं ,कभी नहीं ,कभी नहीं।
एक प्रोमोशन  ,साढ़े तेरह ट्रांसफर सुना ,देखा आपने कहीं
मैं तो झेल रहा हूँ वही , मैं तो भोग रहा हूँ वही।



Thursday, May 7, 2020

APNI DIARY SE ( 22 FEBRUARY 2005)

                                        अपनी डायरी  से     ( 2 2 फरवरी 2005 )

आज हबीब  तनवीर जी का नाटक "चरणदास चोर " दयाल सिंह कॉलेज ,ऑडिटोरियम, नई दिल्ली में देखा। नाटक ने बहुत प्रभावित किया। चरण दास चोर बने गोविंद राम जी से भी बात किया। नाटक बहुत ही उत्कृस्ट था। अंत में हबीब तनवीर जी द्वारा दिया गया भाषण  भी। कला ,साहित्य विरोध की पृस्ठभूमि तैयार करते हैं। विरोध एक दिन क्रांति बन जाता है। हर कलाकार ,साहित्यकार स्वभावतः प्रकृतिस्थ ,कुदरती तौर पर व्यवस्था विरोधी होता है। जो नहीं है,वह चाटुकार है। कला और साहित्य व्यवस्था पूजक या पोषक हो ही नहीं सकता। जँहा ऐसा हुआ ,वह समाज ,राज मृत हो जाता है। आज नहीं तो कल। हर सत्य का यही हस्र  होता है ;जीवन में विरोध का सामना ,मरने पर आम लोगो द्वारा और विरोधियों द्वारा भी पूजा जाना। सिर्फ पूजा जाना ,आचरण नहीं। क्योंकि वह उनकी शक्ति के बाहर होता  है। यह हस्र हुआ -सुकरात का ,ईशा मशीह का ,गाँधी का और चरण दास चोर का भी।
रामेश्वर दुबे
7 मई 2020 ( स्मृति 22  फरवरी 2005 )