Monday, April 20, 2009

उत्पादकता, गुणवत्ता, मानवता (उगुमा) चालीसा

उगुमा चालीसा
दोहा-

उत्पादकता को नमन करूँ , गुणवत्ता को प्रणाम

मानवता समक्ष नत मस्तक , उगुमा हो अभिराम ।

उत्पादकता को कर में गहुँ , गुणवत्ता पुरे गात

मानवता को उर में धरूँ, उगुमा हो अंतरात्म
चौपाई -
जय उत्पादकता समृधि सागर
जय गुणवत्ता सौन्दर्य उजागर ।
जय मानवता आनंद प्रदायक
जय उगुमा सर्वस्व विधायक ॥ १

जय उत्पादकता श्रृष्टि कर्ता
जय गुणवत्ता वृद्धि कर्ता ।
जय मानवता सब दुःख हर्ता
जय उगुमा सबको संग रखता ॥ २

बढे उत्पादकता तो सेवा में वृद्धि
बढे गुणवत्ता तो शान्ति हो चहु दिशी
बढे मानवता तो प्रेम की सृष्टि
बढे उगुमा तो आनंद की वृष्टि ॥ ३


विन उत्पादकता मानवता नही होई
विन गुणवत्ता उत्पादकता-अर्थ न कोई ।
विन मानवता उत्पादकता बेकार
तभी तो जग में मची हाहाकार ॥ ४

उत्पादकता - सृष्टि से सब कोई सरसे
गुणवत्ता - गुण से सब कोई हरसे ।
मानवता - प्रेम तो सब पर बरसे
उगुमा परस हेतु देवता भी तरसे ॥ ५

हाय , मानवता के गोदाम पे डाला
उत्पादकता का बड़ा सा ताला ।
गुणवता ही है कुंजी , लाला
उगुमा पट खोलो , करो निवाला ॥ ६

उत्पादकता वसुंधरा है भाई
गुणवत्ता शांत शशि की नाई ।
मानवता दिनकर सी प्रभा विखराई
उगुमा निखिल ब्रह्माण्ड गुसाईं ॥ ७

उत्पादकता सुख सबको सुहाई
गुणवत्ता सबके मन भाई ।
मानवता के सब देवे दुहाई
जब उगुमा जन मन में समाई ॥ ८

उत्पादकता धन सृजनहार
गुणवत्ता से निःसृत विकार ।
मानवता दीन पालनहार
उगुमा रचे सम्यक संसार ॥ ९

उत्पादकता सब जीवों का त्रान
गुणवता है सबका ही प्राण ।
मानवता से हो कल्याण
उगुमा से अपवर्ग प्रयांन ॥ १०

उत्पादकता मन के बाहर खोज
गुणवत्ता है मन का सोच ।
मानवता है अंतरतम परितोष
उगुमा सम्यक संतुलित होश ॥ ११

उत्पादकता सरजे ब्रम्हा की नाई
गुणवत्ता पाले विष्णु सम भाई ।
मानवता करे शिव सा मंगल
जब उगुमा हो ,जग में ना दंगल ॥ १२

उत्पादकता ब्रम्हचर्य आश्रम
गुणवत्ता गृहस्थ सा श्रम ।
मानवता वानप्रस्थ सा सेवा
उगुमा सन्यास -आनंद मेवा ॥ १३

उत्पादकता से शुद्र सेवा मूल
गुणवत्ता से खिले वैश्य -गुल ।
मानवता छत्रिय सदृशा
उगुमा ब्रह्मण संत सरीखा ॥ १४

उत्पादकता -समय, उर्जा ,सामान बचाए
गुणवता - जो जब मांगे सो सब पाए ।
मानवता दो हृदय मिलाये
उगुमा सर्वत्र अनीति मिटाए ॥ १५

अब कोई व्यर्थ न समय गवाए
उगुमा के आगे शीश झुकाए ।
करे अमल निज, परिवार ,देश
सर्वश्वा प्राप्त हो न रहे कुछ शेष ॥ १६

जय उत्पादकता सेहत दाता
जय गुणवत्ता स्वाद प्रदाता ।
जय मानवता आरोग्य विधाता
जय उगुमा सब जन के त्राता ॥

जो यह पढ़े उगुमा चालीसा
हो शांत सुखी निर्भय बाली -सा ।
जब सब जन उगुमा को ध्यावें
समता, ममता, सुख, सम्पति पावें ॥ १८

उत्पादकता सुख ,संपत्ति का खेल
गुणवत्ता सुख- शांति का मेल ।
जीवन बाती ,मानवता तेल
बिन उगुमा यह जीवन जेल ॥ १९

मिल श्रमिक उत्पादकता बढ़ाएं
सबके मन गुणवत्ता भाये ।
पूंजी वितरण मानवता लाये
उगुमा दर्शन सबको सुहाए ॥ २०

उत्पादकता सत से असत की राह
गुणवत्ता तम से ज्योति की चाह ।
मानवता मृत्यु से अमरता पान
उगुमा दे यह अभय वरदान ॥ २१

उत्पादकता हो कर्त्तव्य हमारा
गुणवत्ता हो पहचान हमारा ।
मानवता हो लक्ष्य हमारा
उगुमा का यह दर्शन न्यारा ॥ २२

जब तक हम जियें , आनंद से जियें
उरिन होकर अमृत हम अमृत पियें ।
उगुमा- रस देह में भीने दें
खुद जियें औरो को भी जीने दें ॥ २३

मत मौज करो दूसरो को मार
बंद करो यह घटिया व्यापार ।
खुद मरकर पर को मत मारो
उगुमा सन्देश से जगत उबारो ॥ २४

जो उत्पादकता- पथ निज आचरहिं
गुणवता मन में जो धरहीं ।
मानवता जो सदा अनुसरहीं
जग में सदा सर्व सुख करहिं ॥ २५

यह चालीसा नित पढ़े जब कोई
सुखी, शांत, आनंद मगन होई ।
जो यह करे ,पढ़े, सुने, सुनाये
पीर , कलह , कष्ट तुरत मिट जाये ॥ २६

उगुमा सबका प्राण उबारे
सुख, शांति, व सेहत वारे ।
सबका सर्वत्र कष्ट निवारे
जय उगुमा तू सबको तारे ॥ २७

उत्पादकता- अधिकतम देना
न्युनत्तम लेना श्रेष्ठतम जीना ।
गुणवत्ता - शांति- रस पीना
मानवता - प्रेम -रस भीना ॥ २८

उत्पादकता जन मन में समाये
गुणवत्ता जब सबको भाये ।
मानवता सबको हरसाए
उगुमा सबका द्वंद्व मिटाए ॥ २९

उत्पादकता मूल संस्था आधार
गुणवत्ता मध्य तना ,पत्ती डार
मानवता उच्च फूल,फल चार
उगुमा सम्पूर्ण जगदाधार ॥ ३०

उत्पादकता हो गरीबी निवारक
गुणवत्ता हो शांति धारक ।
मानवता हो करुना करक
उगुमा हो सब दुःख संघारक ॥ ३१

उत्पादकता श्रमिक के हाथ
गुणवत्ता प्रायोजक के साथ ।
मानवता उच्च प्रबंधन-माथ
उगुमा प्राण संस्था रूपी गात ॥ ३२

मानवता सहयोग बढ़ावे
उत्पादकता बर्बादी घतावे ।
गुणवत्ता चार चाँद लगावे
उगुमा समता ,ममता लावे ॥ ३३

सहयोगिता ही जीवन आधार
प्रतियोगिता से बढ़े अत्याचार ।
निर्बल गरीबों पर चौगुना मार
कुदरत भी होती लाचार ॥ ३४

उगुमा सन्देश सीमित हो इक्छा
समता ,करुना ,प्रेम की शिक्छा ।
सम्यक वृद्धि , ना हो हिंसा
सहयोग, स्नेह हो बढ़े अहिंसा ॥ ३५

उत्पादकता गुणवत्ता से बढ़े व्यापार
मानवता से सहयोग ,प्रेम का हो संचार ।
जो मन में लाये उगुमा का विचार
हो जाये उन सबका वेना पार ॥ ३६

उगुमा विचार है एक क्रांति भाई
निज,घर-परिवार का हो भलाई ।
संता का, देश का करे विकाश
अज्ञान मिटे चंहु दिशी हो प्रकाश ॥ ३७

बिन उत्पादकता दुखमय जीवन
बिन गुणवत्ता न चैन अमन ।
बिन मानवता जीवन मे ना रस
बिन उगुमा बेकार है सर्बश ॥ ३८

जब नित गायें उगुमा चालीसा
और ध्यान नित उगुमा पर आशा ।
मिटे जग का सारा खेल तमाशा
मिटे सबका दुःख दर्द हताशा ॥ ३९

उगुमा का सन्देश सुने बहन औ भाई
लिंग, धर्म, वर्ग, भाषा,क्षेत्र की नहीं लराई ।
दीनता,हीनता मिटे कर ,में गहुँ
उगुमा घन जब नभ चंहु दिशी छाई ॥ ४०

दोहा -
उत्पादकता से भोजन मिले ,गुणवत्ता से स्वाद
मानवता से मिले प्रेम-रस ,उगुमा से मिटे प्रमाद ।