Tuesday, June 23, 2020

ANAAM

                                                         अनाम
एक गांव में25 वर्षीय एक युवक रहता था। था तो वह निकम्मा, झूठा,फरेबी,डरपोंक और कमजोर पर अपनी इन कमियों को छिपाने के लिए वह बड़े बड़े डिंग हांकता था। तरह तरह के मुखौटा पहनता था। अपने आपको गॉव का सबसे बहादुर,बुद्धिमान और मजबूत व्यक्ति बताता था। स्वयं के द्वारा गढ़े गए किस्से कहानियों जैसे मगरमच्छ से लड़ाई,शेर से सामना,सुनसान  जंगल में अकेले रात रात भर तपस्या आदि सुनाया करता था। उसके कहने के अंदाज,शैली,वाक्पटुता से गांव के सभी जवान,बच्चे,बूढ़े बहुत प्रभावित थे। उसके घर में उसके अलावा उसकी सत्तर वर्षीय माँ रहती थी। चूँकि वह बातों के अलावा कोई और काम धंधा कर स्वयं कमाने की योग्यता नहीं रखता था,ऐयाशी उसके रग में थी,अतः उसने शादी भी नहीं करने की ठान ली थी। पर जिंदगी तो चलानी थी माँ की और अपनी भी ऐयाशी भरी,वह गांव के सेठ साहूकारों से छुपकर सम्बन्ध रखता था तथा उनके दिए धन पर अपना घर चलाता था।
 वह  गाँव के सभी लोगों को चौपाल पर बुलाकर महीने में एक दिन अपने बहादुरी के कृत्रिम किस्से परम्पराओं और धर्म के चासनी में चुभोकर ऐसे चटाता था कि पूरा गांव महीने भर उसे चाव से चाट चाट कर ,चटकारे ले ले कर चबाता और चूसता रहता था। जब कोई हारी-मारी,वीमारी,भुखमरी,बेरोजगारी,प्राकृतिक आपदा या महामारी आती तो वह टोना,टोटका जैसे ताली,थाली,घंटी,शंख बजाना, घर में अँधेरा कर बाहर दिया,टॉर्च,मोमबत्ती जलाना,पुरे गांव में पुष्पक विमान से  पुष्प वर्षा करवाना,गोबर गणेश से प्रेरित प्लास्टिक सर्जरी करवाना  ,नाले के गैस से खाना बनवाना,रोजगार हेतु युवाओ द्वारा पीली मिट्टी के पकौड़े तला जाना,पुरे गांव को गाय के गोबर से लिपवाना,गांव के सभी लोगों को बन्दर की तरह नचाना,उछल कूद कराना उसका सगल था। इससे सभी लोग विशेषकर युवा बहुत सम्मोहित होते थे। उन्हें लगता था ये टोने - टोटके जो श्रम साध्य नही हैं उन्हें सीधे सुख एवं स्वर्ग की प्राप्ति करा देंगे। जबकि स्वर्ग की परिभाषा ही है - स्व  गताः स्वर्गः ,जहाँ स्वयं के श्रम से पहुंचा जाय ,स्वर्ग। नरक -नरः कृताः नरकः। जो दूसरे मनुष्य के कृति से प्राप्त हो वह नरक। बिना श्रम स्वर्ग की अभिलाषा से पूरा गांव अभिभूत हो गया। लोग उसे भगवान् ,कलियुग में अवतार मानने लगे। ऐसे ही कई वर्ष वित गए।अब तो गांव के लोग खासकर युवा वर्ग इस तरह मदहोश हो गया कि  अगले महीने चौपाल में कौन सा नया पराक्रम,नयी घटना या कहानी सुनाएगा ,इस पर दाव (बेट) लगाने लगा।इस तरह कई वर्ष बित गए।  सालों बाद जब गांव में काम धंधा बंद होने लगा, युवक बेरोजगार और विमार रहने लगे ,साहूकारों के
नशा (ड्रग) का व्यापार बढ़ने लगा ,अपने बच्चों को  बचाने के लिए बुजुर्ग अपनी जमीन,जायदाद बेचने लगे तो चौपाल में कानाफुसी होने लगी, आखिर ऐसा क्यों? गांव विकाश नहीं कर रहा बल्कि बर्बाद हो रहा!कुछ बुद्धिमान बुजुर्गो को शक होने लगा उस युवा के पराक्रम की कहानी और बहादुरी पर।आखिर क्या किया जाय ? वे उसकी परीक्षा लेने की ठाने।
एक रात चार बुजुर्ग उसके घर गए। दरवाजा खटखटाने लगे। वे आवाज नहीं दिए ,सोचे कि वह घर में तो होगा नही क्योंकि वह तो हर रात जंगल में तपस्या करने जाता है गांव की बेहतरी और विकाश के लिए। मात्र दो चार घंटे ही सो पाता  है वह भी कभी कभी।पर वह घर पर ही था। आवाज सुनने के वावजूद भी वह कुछ नहीं बोला इस डर से कि वह रात में जंगल में तपस्या नहीं करता बल्कि घर में ही सोता है इसका भंडाफोड़ न हो जाय।दरवाजा जब बहुत जोर शोर  से पीटा जाने लगा और बेटा कुछ नहीं बोल रहा था तो बूढी बीमार माँ ने आवाज लगाया,बेटा !देखो ,बाहर दरवाजा कौन पीट रहा है?बिना बोले बेटे के पास अब कब कोई चारा नहीं था, कहीं बहार वाले सुन न ले ,क्योंकि आसक्त माँ ने आवाज लगाना जो शुरू कर दिया था जोर शोर से।
बेटा बोला -कौन हो तुम लोग ?
बुजुर्ग बोले -दरवाजा खोलो, नहीं तोड़ देंगे।
बेटा -हिम्मत है तो तोड़कर दिखाओ? मैं तुम्हे बताता हूँ। मैं कितना बहादुर ,वीर,पराक्रमी हूँ ,नहीं जानते ? घर में असलहे,बन्दुक,बम,बारूद  सब भरे पड़े हैं। सब मारे जाओगे।
बुजुर्गों  ने दरवाजा तुरन्त तोड़ दी।
बेटा -दरवाजा तो तोड़ दी ,हिम्मत है तो घर के सामान को हाथ लगा के दिखाओ। तब मैं तुम्हे बताता हूँ।
बुजुर्ग घर के सारे बासन,बर्तन,साहूकारों द्वारा दिए गए खाने पीने के सामान ,महंगे मशरूम,कीमती काजू,पिस्ता,पेन,विदेशी घडी,आयातित चश्मे सब ले गए।
बेटा-सामान तो ले गए,हिम्मत है तो माँ को छूकर दिखाओ। मेरे लाल आँख के बारे में सूना नहीं !इसके लाल होते ही भस्म हो जाओगे।
हालाँकि बुजुर्ग सिर्फ उसके बहादुरी की परीक्षा करने और उसके पाखण्ड का भंडाफोड़ कर गांव को बर्बादी से बचाना चाहते थे जो की वे कर चुके थे। पर उसके चुनौती को स्वीकार कर उसकी  माँ के गहने,जेवर,साडी,सब उतार ले गए। असक्त ,बीमार, बूढी  माँ नंगी हो बेसुध पड़ी रही।
बीर,बहादुर बेटा बोला -अबे तुम लोग कायर हो,मैंने माँ को छूने की चुनौती दी थी उनकी  साड़ीऔर सामानों   को नहीं ,हिम्मत है तो माँ को छू के दिखाओ तब मैं तुमलोगो को अपना  शौर्य दिखाता हूँ।
बुजुर्ग बेचारे सब परेशान हो गए। उनकी अपनी भी इज्जत थी,संस्कार था,गांव की प्रतिष्ठा थी,मान था,चुपचाप चले गए, वीर बेटे की तथाकथित बहादुरी ,बाचाल व्यवहार,विवेक हीनता और प्रखर  बुद्धिमन्दता पर तरस खाकर।
अगले दिन सुबह  फिर बेटा गांव के सभी बच्चे ,जवान बूढ़ों को बुलाकर चौपाल में नया मुखौटा लगाकर अपने नए पराक्रम का विस्तृत वर्णन करने लगा।
ग्रामवासियों,मीतरों,भाइयों और बहनों !मैं आपको बताना चाहता हूँ कि कल रात हमारे कुछ पडोसी हमारे घर में घुसने की कोशिश किये।वे चार थे हम अकेले। पर हमारी वीरता के आगे वे असक्त और अक्षम हो गए। वे घर में न घुसे, न घुस पाए ,एक इंच भी नहीं। यह एक बड़ा और विचित्र संयोग देखिये कि भगवान् राम की असीम कृपा और गांव के सौभाग्य के चलते मैं कल रात ग्राम विकाश के लिए जंगल में तपस्या करने न जाकर घर में ही अपने असलहों ,बारूदों,बमों ,बंदूकों को सजा रहा था। मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि आपका गांव एक सुरक्छित हाथों में है।
 बाहर बस्ती में बेटा बयान  दे रहा था,मन की बात सुना रहा था 'धर्म'भीरु युवावों को कि अब पडोसी थर थर काँप रहे हैं ,गांव बहुत तेजी से विकाश कर रहा है,विश्वग्राम बन गया है ,विश्वगुरु बने में कुछ ही समय और लगेंगे।
और अंदर घर में असक्त , अस्वस्थ ,अधनंगी मां सुबक सुबक कर रो रही थी सम्मान खोकर,प्रतिष्ठा गवांकर ,इज्जत लूटाकर।
 
रामेश्वर दुबे
23 जून 2020






Wednesday, June 10, 2020

JEET YA HAAR ?

                          जीत या हार ?
युद्ध के शुरु होने के पहले    ही जीत के जश्न का इजहार
ताली,थाली,घंटी, शंख,नगाड़ों की नाद,फूलों की बौछार
घर के अंदर अन्धकार,बाहर नव नव दीपों की कतार
राजा की जर्जर आत्मा,कुंठित मन,तन पर नवलखा हार
सहो,सहो, सहो सहते रहो,कोरोना की मार ,मेरे यार
जनता जनार्दन के जज्वात को जगाये या किये खिलवाड़?
ईमानदार, चौकीदार,कल्कि अवतार ,सुसज्जित दरबार
एक बार नहीं, बार, बार करते रहे जनता से एक तरफ़ा करार
पचास दिन में भ्रष्टाचार ,एक्किश दिन में होगी कोरोना की हार
ब्रह्मा का दिन ,गिन गिन दिन करते रहो इन्तजार
जीत की नहीं,कष्ट,कलह,क्लेश,रोग,भूख,मौत की मार
युद्ध जारी है ,करो इंतजार ,करो इंतजार ,करो इंतजार।