धारा में ही बहते रहने के लिए नहीं हैं हम
सिर्फ दूरी तय करने के लिए नहीं हुआ हमारा जनम।
धारा में बहकर बहुत दूरी तय करते हैं वो
कमजोर, बीमार, लाचार, मृतप्राय है जो ।
जो जितना कमजोर बीमार लाचार मृतप्राय है करते उतनी तय दूरी।
दूरी तय करने की दौड़ में जिंदगी रह जाती अधूरी ।
कभी कभी भंवर में फंसकर न कर पाते तय दूरी
हांफते हांफते न हवस, पूरी न जिंदगी पूरी ।
हम तो धारा के विपरित चलने का करते हैं प्रयास
जीवन जज़्बात से भरपूर लिए आजादी की आश ।
उल्टी धारा में कभी एक पग तो कभी दो पग चल पाते हैं
उमंग और उत्साह में कभी छलांग भी लगाते हैं।
पर फिर वेग में बहकर जहां थे वहीं चले आते हैं
इसी संघर्ष में जीवन का असीम आनंद पाते हैं।
धारा में बहकर विपरीत चलने का नहीं करते नाटक न पाखंड
बहुत दूरी तय नहीं करके भी जीवन जीते अखंड।
अब हमें कह लो तुम मूर्ख या पगली से नहीं कम
जीवित मछली हैं हम, जीवित मछली हैं हम ।
रामेश्वर दुबे