Monday, September 28, 2020

जीवन-संघर्ष

 धारा में ही बहते रहने के लिए नहीं हैं हम

सिर्फ दूरी तय करने के लिए नहीं हुआ हमारा जनम।

धारा में बहकर बहुत दूरी तय करते हैं वो

कमजोर, बीमार, लाचार, मृतप्राय है जो ।

जो जितना कमजोर बीमार लाचार मृतप्राय है करते उतनी तय दूरी।

दूरी तय करने की दौड़ में जिंदगी रह जाती अधूरी ।

कभी कभी भंवर में फंसकर न कर पाते तय दूरी

हांफते हांफते न हवस, पूरी न जिंदगी पूरी ।

हम तो धारा के विपरित चलने का करते हैं प्रयास

जीवन जज़्बात से भरपूर लिए आजादी की आश ।

उल्टी धारा में कभी एक पग तो कभी दो पग चल पाते हैं

उमंग और उत्साह में कभी छलांग भी लगाते हैं।

पर फिर वेग में बहकर जहां थे वहीं चले आते हैं

इसी संघर्ष में जीवन का असीम आनंद पाते हैं।

धारा में बहकर विपरीत चलने का नहीं करते नाटक न पाखंड

बहुत दूरी तय नहीं करके भी जीवन जीते अखंड।

अब हमें कह लो तुम मूर्ख या पगली से नहीं कम

जीवित मछली हैं हम, जीवित मछली हैं हम ।

रामेश्वर दुबे






Sunday, September 20, 2020

किस काम का?

 कभी भी दया दर्शाते नहीं, इंसान हैं? किस काम का?

बिलबिला रहे भूख से बच्चे,सामान है? किस काम का?

सपने कभी तो पूरे हुए नहीं, अरमान है?किस काम का?

तीर रखकर भी चलाते नहीं,कमान है? किस काम का ?

दुश्मन चढ़ा है छातीपर, इलाके भर में पहचान है? किस काम का?

उठाते नहीं आवाज कभी, ज़बान है? किस काम का  ?

रामेश्वर दुबे,२१/९/२०२०

Friday, September 18, 2020

बांया-दांया

 जब मैंने बांया पैर उठाया,

वह बहुत जोर से धमकाया

है भी तुम्हारे पास बांया पैर?

उठाओ मत, न रहेगी खैर!

मैंने पूछा - क्या आप दक्षिण पंथी हैं

सिर्फ सुनते हैं देखते कुछ नहीं।

जब मेरा दांया पैर उठा

वह हमसे अचानक रुठा

बोला- आप दांये पैर से क्यों चलते,

यह पैर तो लोगों को रहा है मसलते

जोर से चिल्लाया और नारा लगाया

होगे नेस्तनाबूद क्रांति का विहान जो आया।

मैंने पूछा क्या आप वामपंथी हैं?

सिर्फ देखते हैं, सुनते कुछ नहीं।

मैंने दोनों को बुलाया

विस्तार से समझाया

मैं सदियों सदियों से दोनों पैरों से चलता हूं

कभी बांया तो कभी दांया पैर आगे करता हूं।