कर्मवीर
कैसे छोड़ें अपनी मेहनत ,कोई बता दे आज हमको
सबने अपने धर्म को छोड़ा, अंतर्तम और मर्म को तोड़ा
कैसे छोड़े अपनी नियत, कोई बता दे आज हमको।
पसीने बहाकर खाते कमाई ,कवि करते हौसला अफ़जाई ,
सूरज ,बादल,वायु से मिताई ,तपकर ,बहकर करते भलाई ,
कैसे छोड़े अपनी कुदरत कोई बता दे आज हमको।
संजोकर रखते विरासत थाती ,गुलामी नहीं है हमको भाती ,
मारो गोली धरम, जाती , दूर रहो सब आतम घाती ,
कैसे फोड़ें अपनी किस्मत ,कोई बता दे आज हमको।
नहीं भरोसा इनकी नेकी में ,पर सर अपना इनकी ढेकी में ,
बल है सिर्फ अपनी एकी में
कैसे बताए अपनी दिक्कत ,कोई बता दे आज हमको।
गाँवों में ढेले फेकते ,कस्बों में ठेले लगते ,
शहरों में मेले लगते ,घंटो खटते धेले मिलते ,
मांगो तो थाने, जेलें मिलते
कैसे छोड़े अपनी कीमत ,कोई बता दे आज हमको।
धर्म नहीं तुम कर्म ही दे दो ,योग क्षेम का मर्म ही दे दो ,
बियर ,पेप्सी, नहीं जल गर्म ही दे दो
बच्चों को दो रोटी नर्म ही दे दो ,
और नहीं हमसे थोड़ी शर्म ही ले लो ,
कैसे छोड़े अपनी इज्जत कोई बता दे आज हमको।
उत्पादकता के मस्तक है हम ,गुणवत्ता के सर्जक है हम
मानवता के रक्षक है हम
कैसे छोड़े अपनी हिम्मत कोई बता दे आज हमको।
कैसे छोड़े अपनी मेहनत ,कोई बता दे आज हमको।
रामेश्वर दुबे ,
25 मई 2016 ,( आकाशवाणी ,लखनऊ के श्रमिक जगत कार्यक्रम में प्रसारित)
कैसे छोड़ें अपनी मेहनत ,कोई बता दे आज हमको
सबने अपने धर्म को छोड़ा, अंतर्तम और मर्म को तोड़ा
कैसे छोड़े अपनी नियत, कोई बता दे आज हमको।
पसीने बहाकर खाते कमाई ,कवि करते हौसला अफ़जाई ,
सूरज ,बादल,वायु से मिताई ,तपकर ,बहकर करते भलाई ,
कैसे छोड़े अपनी कुदरत कोई बता दे आज हमको।
संजोकर रखते विरासत थाती ,गुलामी नहीं है हमको भाती ,
मारो गोली धरम, जाती , दूर रहो सब आतम घाती ,
कैसे फोड़ें अपनी किस्मत ,कोई बता दे आज हमको।
नहीं भरोसा इनकी नेकी में ,पर सर अपना इनकी ढेकी में ,
बल है सिर्फ अपनी एकी में
कैसे बताए अपनी दिक्कत ,कोई बता दे आज हमको।
गाँवों में ढेले फेकते ,कस्बों में ठेले लगते ,
शहरों में मेले लगते ,घंटो खटते धेले मिलते ,
मांगो तो थाने, जेलें मिलते
कैसे छोड़े अपनी कीमत ,कोई बता दे आज हमको।
धर्म नहीं तुम कर्म ही दे दो ,योग क्षेम का मर्म ही दे दो ,
बियर ,पेप्सी, नहीं जल गर्म ही दे दो
बच्चों को दो रोटी नर्म ही दे दो ,
और नहीं हमसे थोड़ी शर्म ही ले लो ,
कैसे छोड़े अपनी इज्जत कोई बता दे आज हमको।
उत्पादकता के मस्तक है हम ,गुणवत्ता के सर्जक है हम
मानवता के रक्षक है हम
कैसे छोड़े अपनी हिम्मत कोई बता दे आज हमको।
कैसे छोड़े अपनी मेहनत ,कोई बता दे आज हमको।
रामेश्वर दुबे ,
25 मई 2016 ,( आकाशवाणी ,लखनऊ के श्रमिक जगत कार्यक्रम में प्रसारित)