Saturday, April 6, 2024

GULAAMI KI KHOJ

                                       गुलामी की खोज

कब बने गुलाम? कौन बना गुलाम?

सम्पुर्न  सन्सार विजेता

सिकन्दर और सेलुकस को करना पना

 सनातन से समझौता और सन्धि

छोदना पना हिन्सा और युद्ध

जो भारत मे थे मौजुद

चन्द्रगुप्त,चानक्य,वीर और बुद्ध

यथुरास्त्र,ईशा,मुह्हम्मद भी आये

सनातन मे सदा के लिये समाये

पर जब गोरी और चङ्गेज आये

अपने साथ हिन्सा,लूत,युद्ध्हि नही

गुलामी की जञ्जीर लाये

जय्चन्दो को वही भाये

धोखेबाज,झूथा,फरेबिया

मिर्जाफर और सिन्धिया

गान्धी,सुवास,नेहरु,पतेल

भगत,असफ़ाकउल्ला,जैसे वॆरो की 

बहार आईहमे आजादी दिलायी



I DO ASPIRE

                                                            I DO ASPIRE 

NEITHER  BE MILITANT NOR A  MILLIONAIRE

NEITHER BE BLINDLY FAITHFUL NOR A BILLIONAIRE

NEITHER BE SLAVE NOR BE MASTER

NEITHER BE SLOWER NOR BE FASTER

NEITHER PEACE OF GRAVE NOR WAR

BUT TO HAVE JUSTICE FOR ALL AT PAR

NEITHER BE BLACK NOR BE WHITE

NEITHER BE LEFT NOR BE RIGHT

NEITHER BE TIMID NOR BE KNIGHT

NEITHER BE DULL NOR BE BRIGHT

NEITHER BE LOOSE NOR BE TIGHT

NEITHER BE BEGGAR NOR HAVE SUMPTUOUS DIET

BUT TO HAVE BLISS,JOYAND JUSTICE AND BE QUIET

TO PEACEFULLY PAVE THE MIDDLE PATHFOR ECOLOGICAL FIGHT

AND RESIST,RESISTRAISE MY VOICE FOR BEING"S RIGHT

 


 

Wednesday, February 7, 2024

jivan-khoj

 जीवन-खोज

क्या है जीवन ?

कहाँ    है जीवन ?

सामानो में  या सम्बन्धो में 

जण  में  या चेतन में 

पिन्ड  में  या ब्रह्मन्ड  में 

धरती या आकश में 

सागर या पहाड  में  

शरीर में  या प्राण  में 

                             आग, पानी,आन्धी में 

                             गोडसे   या गान्धी  में 

                                          युद्ध में  या बुद्ध में 

                             सिकन्दर  या सुकरात में 

                            दिन में  या रात में 

आलिसान बङ्गला या महन्गे कार में 

अधरों  के मुस्कान या अश्रुधार में 

खेत, किसान मे या फ़ैक्त्री बाजार में 

शह्रर के सडक गांव के गलियार में 

शान्ति में , भ्रान्ति में ,या हरवा हथियार में ?

                                माता- पिता, भाई- बहन,दोस्त या यार में 

                                पति- पत्नि,प्रेमी- प्रेमिका के पनपते प्यार में 

                                गुरु- शिश्य ,बेटा- बेटी , शाले- शाली के द्वार में 

                                स्वयम सन्यास, देव प्रेम या देश प्रेम में 

                               या धर्म ध्वजा के हुङ्कार में 

                              जन्म में , म्रित्यु में ,या सरकते सन्सार में ?

जीवन " है", हुई अनुभुति,

"क्या है" रहा अनुतरित,

खोज जारी है

शब्द पर मौन भारी है

जीवन कहाँ  है ?

पाया उत्तर

जीवन वहाँ  है

जहाँ  सत्य,अहिन्सा,करुणां  और न्याय है

जीवन का यही पर्याय है,बस यही पर्याय है.

०४ फ़रवरी २०२४




Monday, February 5, 2024

ANUBHUTI

 अनुभुति

क्या हो जब

 मञ्जिल ही मार्ग बन जाए,

फिर क्यो और कहा जाए?

या फिर

जब मार्ग ही मञ्जिल बन जाए

तो जहा भी जाए उसे ही पाए 

प्रेम ही मार्ग प्रेम ही मञ्जिल

सुख मे दुख मे आनन्द पाए

जन्मते बाल राम, जवानी मे सिया राम

मिलते राम राम, मरते सत्य राम

अहा, राम के रसते राम को पाए

जीवन भर आनन्द मनाए.

२२जनवरी२०२४ प्रानप्रतिस्था के अवसर पर



Friday, October 2, 2020

जब कृष्ण गये कब्र

 द्रौपदी की चीर हरी गई

राधा की रीढ़ मोड़ी गई

सीता की सील तोड़ी गई

अहिल्या की आंख फोड़ी गई

जानकी की ज़बान काटी गई।

हे कृष्ण! कहां हो ? देखो!

कृष्णा कराह रही

कहीं भी पनाह नहीं ?

कौरवों की चाह यही

चीर,सील दाह रही

क्या मथुरा से हाथरस का

बचा कोई राह नहीं ?

मथुरा में ही हो या बन गये द्वारिकाधीश?

कब से कौरवों को दे रहे आशीष ?

द्रौपदी कितना करे सब्र

जब कृष्ण चले गए कब्र।

उसे अब कृष्ण को पुकारना नहीं

कौरवों को ललकारना होगा

दुर्गा, काली, शक्ति बन

संघर्ष की ज्वाला धधकाना होगा।

-- रामेश्वर दुबे ०२अक्टूबर २०२०








Monday, September 28, 2020

जीवन-संघर्ष

 धारा में ही बहते रहने के लिए नहीं हैं हम

सिर्फ दूरी तय करने के लिए नहीं हुआ हमारा जनम।

धारा में बहकर बहुत दूरी तय करते हैं वो

कमजोर, बीमार, लाचार, मृतप्राय है जो ।

जो जितना कमजोर बीमार लाचार मृतप्राय है करते उतनी तय दूरी।

दूरी तय करने की दौड़ में जिंदगी रह जाती अधूरी ।

कभी कभी भंवर में फंसकर न कर पाते तय दूरी

हांफते हांफते न हवस, पूरी न जिंदगी पूरी ।

हम तो धारा के विपरित चलने का करते हैं प्रयास

जीवन जज़्बात से भरपूर लिए आजादी की आश ।

उल्टी धारा में कभी एक पग तो कभी दो पग चल पाते हैं

उमंग और उत्साह में कभी छलांग भी लगाते हैं।

पर फिर वेग में बहकर जहां थे वहीं चले आते हैं

इसी संघर्ष में जीवन का असीम आनंद पाते हैं।

धारा में बहकर विपरीत चलने का नहीं करते नाटक न पाखंड

बहुत दूरी तय नहीं करके भी जीवन जीते अखंड।

अब हमें कह लो तुम मूर्ख या पगली से नहीं कम

जीवित मछली हैं हम, जीवित मछली हैं हम ।

रामेश्वर दुबे






Sunday, September 20, 2020

किस काम का?

 कभी भी दया दर्शाते नहीं, इंसान हैं? किस काम का?

बिलबिला रहे भूख से बच्चे,सामान है? किस काम का?

सपने कभी तो पूरे हुए नहीं, अरमान है?किस काम का?

तीर रखकर भी चलाते नहीं,कमान है? किस काम का ?

दुश्मन चढ़ा है छातीपर, इलाके भर में पहचान है? किस काम का?

उठाते नहीं आवाज कभी, ज़बान है? किस काम का  ?

रामेश्वर दुबे,२१/९/२०२०